झाँसी- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत अंतर्विभागीय कार्यशाला का आयोजन मुख्य चिकित्सा अधिकारी झांसी कार्यालय सभागार में किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्य चिकित्सा अधिकारी झांसी डॉ सुधाकर पांडेय द्वारा की गई।
सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन कर एवं मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यशाला का शुभारंभ हुआ।
डॉ सुधाकर पांडेय मुख्य चिकित्सा अधिकारी झांसी ने बताया कि जनपदस्तरीय जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य समिति के सदस्यों के साथ अंतर्विभागीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदीकरण करना है। जलवायु परिवर्तन से तापमान में वृद्धि, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, वायु प्रदूषण, चरम मौसम की घटनाएं व जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से वायु प्रदूषण के कारण रोगों में वृद्धि, रोगों की मौसमी आवृत्ति तथा भौगोलिक वितरण में परिवर्तन, नवीन रोगों की उत्पत्ति एवं नवीन क्षेत्र में रोगों का प्रसार, अत्यधिक वर्षा सूखा, ओलावृष्टि के कारण फसलों की हानि व जनसंख्या का विस्थापन जैसी समस्याएं दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। इसके प्रति संवेदनशील होकर सभी विभागों को मिलजुल कर कार्य करने की आवश्यकता है।
कार्यशाला में प्रस्तुतिकरण के माध्यम से डॉ उत्सव राज ने बताया कि वर्तमान में चरम मौसम की घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गई हैं। साथ ही वायु प्रदूषण में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिससे हृदयरोग,फेफड़ों की बीमारियां, मानसिक रोग, अवसाद, तनाव में वृद्धि हो रही है। मलेरिया और डेंगू के आउटब्रेक वर्ष के अंत तक सूचित हो रहे हैं। लेप्टोस्पायरोसिस व स्क्रब टायफस का प्रसार बढ़ता जा रहा है। आबादी के विस्थापन से आजीविका का नुकसान होता है। कृषि उत्पादन पर भी जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दिख रहा है। बढ़ते तापमान से वर्षा के पैटर्न में बदलाव हुआ है, जिससे कृषि उत्पादकता में कमी आई है व फसलों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। साथ ही नवीन कीटों और बीमारियों का प्रसार होने से फसलों को नुकसान हो रहा है। शहरी क्षेत्र में विशेष कर निचले और खराब जल निकासी व्यवस्था वाले क्षेत्रों में बाढ़ व जल भराव का खतरा बढ़ गया है, जिससे संपत्ति की क्षति व जीवन की हानि होती है। जिसका असर सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और आर्थिक गतिविधियों पर पड़ता है। समुद्र के स्तर में वृद्धि, बाढ़ व जल भराव होने से तटीय क्षेत्र के लोगों का विस्थापन और पलायन होता है, जो कि उनके स्वास्थ्य पर असर डालता है। इसलिए आवश्यक है कि सभी विभाग मिलजुल कर प्रदूषण को कम करने हेतु आवश्यक उपाय अपनाएं व रणनीतियां तैयार करें। स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देकर, जीवाश्म ईंधन के उपयोग को सीमित कर, वायु की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। जल जनित बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए स्वच्छ पानी की उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है। चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य, सहायता और परामर्श सेवाएं प्रदान की जानी चाहिए। आपदा प्रबंधन हेतु पूर्व चेतावनी प्रणाली, निकासी योजना और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे को लागू किया जाना आवश्यक है। साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
नोडल अधिकारी डॉ रमाकांत स्वर्णकार ने पर्यावरण संरक्षण हेतु छोटे-छोटे उपाय जैसे – सार्वजनिक परिवहन का उपयोग, जीवाश्म ईंधन का कम से कम उपयोग, ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देना, वर्षा जल संरक्षण, अनावश्यक बिजली का उपयोग न करना, पानी की बर्बादी रोकना, भूमिगत जल का कम उपयोग करने पर बल दिया।
कार्यशाला में स्वास्थ्य विभाग के साथ ही कृषि विभाग, शिक्षा विभाग, जल संस्थान, पशु चिकित्सा विभाग, आपदा प्रबंधन विभाग, एसपीएम विभाग मेडिकल कॉलेज के समिति सदस्य भी सम्मिलित हुए।
कार्यशाला का संचालन स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी डॉ विजयश्री शुक्ला ने एवं धन्यवाद ज्ञापन नोडल अधिकारी डॉ रमाकांत स्वर्णकार ने किया।
जनपदीय समिति की कार्यशाला में अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ के एन एम त्रिपाठी, डॉ एनके जैन, डॉ रवि शंकर, नोडल अधिकारी डॉ रमाकांत स्वर्णकार, डॉ उत्सव राज, डॉ अंशुमान तिवारी, श्रीमती स्नेहिल सिंह चौधरी, श्री रितेश सिंह, डॉ अनुराधा, डॉ विजयश्री शुक्ला, डॉ सतीश चंद्र सहित कृषि विभाग से श्री कुलदीप मिश्रा, जिला विद्यालय निरीक्षक श्रीमती रति वर्मा, मेडिकल कॉलेज से डॉ विमल आर्या, डॉ हैदर, उपमुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ जे एस पाल, जिला पंचायत राज अधिकारी श्री बालगोविंद, यूनिसेफ प्रतिनिधि श्री आदित्य जायसवाल सहित समस्त अधिकारी व कर्मचारी गण उपस्थित रहे।
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