रिपोर्ट – करतार सिंह यादव
खुरई/सागर। महामंगला महाकाली प्रांगण खुरई में चल रही सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम दिवस पूज्य देवी रत्नेश्वरी जी ने भगवान श्री कृष्ण के 16,108 विवाह की कथा भक्तों को श्रवण करते हुए, देवी जी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने जब 8 विवाह किया तो यह सुनकर भौमासुर राक्षस ने भगवान श्री कृष्ण से द्वेष रखते हुए उनसे अधिक विवाह करने के लिए 16,100 कन्याओं को बंदी बनाकर ले आया l जब उन सभी कन्याओं ने मन ही मन भगवान श्री कृष्ण का सुमिरन किया और रक्षा के लिए पुकार लगाई तो भगवान श्री कृष्णा उनकी रक्षा के लिए आए और उन्होंने भौमासुर राक्षस का बद्ध कर उसका अंत किया और सभी कन्याओं को राक्षस के बंधन से मुक्त किया l उन सभी कन्याओं ने भगवान श्री कृष्ण से निवेदन किया कि इस राक्षस द्वारा हम सभी को बंधक बनाया गया था अब हमसे कोई अपनाएगा, विवाह कौन करेगा, तब उनकी करुण पुकार सुनकर दिनों पर दया करने वाले दीनदयाल प्रभु ने उनको स्वीकार किया और उन सभी 16,100 कन्याओं से विवाह किया l
पहले आठ विवाहों में रुकमणि जी पहली, उनके अलावा जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा जी और इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने 16,108 विवाह किया l देवी जी ने आगे कथा में सुदामा चरित्र श्रवण करते हुए बताया कि मित्र कैसा होना चाहिए l भगवान श्री कृष्णा के परम मित्र सुदामा जी हुए l जब भगवान श्री कृष्णा और सुदामा जी गुरुकुल में अध्ययन कर रहे थे और जब भोजन के लिए लकड़ियां लेने वन को गए तो गुरु माता ने उन्हें खाने के लिए एक पोटली में बांधकर चने दिए, जिन्हें जंगल में केवल सुदामा जी ने ही पा लिया l और भगवान श्री कृष्ण के पूछने पर बोले कि वह तो सारे चैन आती भूख लगने की कारण मैंने खा लिए l बाय चने साधारण चने नहीं थे बल्कि शापित चने थे जो भी उन्हें खाता वह निर्धन दीन- हीन हो जाता, सुदामा जी यह जान गए थे, इसलिए उसने उन्होंने अपने मित्र की रक्षा के लिए वह सारे चने स्वयं ही खा लिए l देवी जी ने कहा कि मित्र वही होता है जो बिना कोई अपेक्षा रखे अपने मित्र की रक्षा एवं सहायता के लिए हमेशा तैयार रहता है l सुदामा जी की अत्यंत दीनदसा होते हुए भी उन्होंने अपने मित्र द्वारकाधीश श्री कृष्ण से कभी कुछ नहीं मांगा लेकिन जैसे ही भगवान को अवसर मिला तो उन्होंने सुदामा पुरी ही बसा दी थी l कथा के विराम दिवस देवी पूज्य रत्नेश्वरी जी ने सभी भक्तों को बताया कि ईश्वर की शरणागति ही परम गति है l समाज को भक्ति का संदेश देते हुए देवी जी ने कहा कि हमें अपने जीवन में भक्ति और भजन का नियम अवश्य बनाना चाहिए l सागर से आई राधा-कृष्ण की सुंदर झांकी द्वारा प्रस्तुत नित्य एवं फूल होली का भक्तों ने खूब आनंद उठाया l आज माननीय लखन सिंह जी बमौरा अध्यक्ष- क्षत्रीय महासभा सागर, पंडित श्री मनोज चौबे जी युवा ब्राह्मण सभा अध्यक खुरई, पंडित श्री प्रवीण नायक (पप्पी), पंडित श्री रजनीश दुबे, पंडित श्री राजीव चौबे, धर्मेंद्र ठाकुर पार्षद, श्रीमती विशाखा बलराम यादव पार्षद, सौरभ राय आदि ने भी उपस्थित होकर कथा श्रवण कर धर्म लाभ प्राप्त किया l