ललितपुर। राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद नैक द्वारा मूल्यांकित संस्थान पहलवान गुरुदीन महिला महाविद्यालय में सोमवार को गुरु गोविंद सिंह जयंती मनाई गई। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय की प्रबंधक श्रीमती सितारा देवी, अध्यक्ष श्रीमती कंचन लता यादव, प्रबंध निर्देशिका डॉ. पूजा यादव, प्राचार्य डॉ. सूफिया, एनसीसी कैप्टन डॉ. वंदना याज्ञिक, एवं समस्त स्टाफ के द्वारा संयुक्त रूप से मां सरस्वती एवं गुरु गोविंद सिंह की प्रतिमा पर फूल माल्यार्पण कर किया गया। महाविद्यालय की प्रबंधक श्रीमती सितारा देवी ने छात्राओं को बताया कि गुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना साहिब में हुआ था। गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। श्री गुरु तेग बहादुर के बलिदान के उपरांत गुरु गोविंद सिंह 11 नवंबर सन् 1675 को दसवें गुरु बने। वे एक महान योद्धा चिंतक, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे । सन् 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। प्रबंध निर्देशिका डॉ. पूजा यादव ने बताया कि गुरु गोविंद सिंह जयंती एक सिखों का त्यौहार है। जो सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के जन्मदिन के उपलक्ष में मनाया जाता है। यह एक धार्मिक उत्सव है। जिसमें समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है। गुरु गोविंद सिंह जयंती पर भारत के बाजारों में बड़े जुलूस का निकलना आम बात है। जुलूस के दौरान लोग भक्ति गीत गाते हैं, और वयस्कों और बच्चों के बीच मिठाइयां और शरबत बांटते हैं। महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. सूफिया ने बताया कि गुरु गोविन्द सिंह जी गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र थे, जिन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। गुरु गोविंद सिंह नौ वर्ष की आयु में गुरु बनने पर अपने पिता के उत्तराधिकारी बने। गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाओं का सिखों पर बहुत प्रभाव है। अपने जीवन काल में वह मुगल शासकों के खिलाफ खड़े हुए और अन्याय के खिलाफ लडे। 1699 में गुरु गोविंद सिंह जी ने समाज के निचली जाति के पांच लोगों को लिया और उन्हें अपने पांच प्यारे के रूप में बपतिस्मा दिया। उन्हें बहुत साहस और ईश्वर के प्रति समर्पण प्रदान किया। यह ईश्वर के प्रति उनका समर्पण उनकी निडरता और लोगों को उत्पीड़न से बचाने की उनकी इच्छा थी। जिसने गुरु गोविंद सिंह जी को संत सैनिकों की एक सैन्य सेवा खालसा की स्थापना करने के लिए प्रेरित किया। जिसे उन्होंने बपतिस्मा दिया। गुरु गोविंद सिंह जी के मार्गदर्शन और प्रेरणा के तहत खालसा ने एक सख्त नैतिक संहिता और आध्यात्मिक अनुशासन का पालन किया। यह उनके साहस का माध्यम था कि लोग उस समय भारत में मुगल शासन के उत्पीड़न के खिलाफ उठ खड़े हुए। एक आध्यात्मिक और सैन्य नेता होने के अलावा गुरु गोविंद सिंह जी एक प्रतिभाशाली लेखक भी थे। जिन्होंने साहित्यिक कृतियों को एक बड़ा संग्रह लिखा। 1708 में अपने मृत्यु से पहले उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब जो सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ है। इस कार्यक्रम में प्रकाश खरे, असि० प्रो० प्रीति शुक्ला, असि० प्रो० साधना नागल, असि० प्रो० रंजना श्रीवास्तव, असि० प्रो० रत्ना याज्ञिक, असि०प्रो० सुषमा पटेल, असि० प्रो० नेहा याज्ञिक, असि० प्रो० आरती बुंदेला, श्रीमती रजनी यादव, पूजा सिंह, राघवेंद्र सिंह, दीपेंद्र यादव, मुस्ताक खान, श्रीमती गेंदा, मालती राज, नेहा अहिरवार, मुजफ्फर अली, राम सहाय, विमला तथा परमानंद, उपस्थित रहे।
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