श्रीमद्भागवत पुराण कथा के चौथे दिन कथा के परीक्षित बने जयकिशोर शर्मा व उनकी पत्नी जानकी देवी

ब्यूरो रिपोर्ट: अमित त्रिवेदी मुस्करा हमीरपुर।

कस्बे के चारथोक टंकी घर में सोमवार से हो रही श्रीमद्भागवत कथा के आज चौथे दिन कथावाचक ने श्री कृष्ण जन्म की कथा सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कस्बे के टंकी घर में हो रही श्रीमद्भागवत पुराण कथा के चौथे दिन कथा के परीक्षित बने जयकिशोर शर्मा व उनकी पत्नी जानकी देवी के साथ श्रोताओं को कथावाचक संजय कृष्ण द्विवेदी ने श्री कृष्ण जन्म की कथा सुनाई। कथावाचक ने श्री कृष्ण जन्म का वर्णन करते हुए कहा कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। जिसे पूरा देश कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से त्योहार के रूप में मनाता है। कथा में बताया कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आतताई पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी। जिसका विवाह वासुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। जब कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था तभी रास्ते में आकाशवाणी हुई। “हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।” यह सुनकर कंस वासुदेव को मारने के लिए उद्धत हुआ। तब देवकी ने उससे विनयपूर्ण कहा मेरे गर्भ से जो संतान होगी उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है? कंस ने देवकी की बात मान ली। और मथुरा वापस चला आया। उसने वासुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया। वासुदेव देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। जब आठवां बच्चा होने वाला था कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। श्रीहरि ने वासुदेव देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वासुदेव देवकी को पुत्र पैदा हुआ उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ। जो और कुछ नहीं सिर्फ माया थी। कहा कि आठवें पुत्र जो स्वयं श्रीहरि थे। उन्होंने कोठरी में देवकी वासुदेव को अपना चतुर्भुज रूप शंख, गदा, पद्म धारण किए हुए दर्शन दिए। और वासुदेव नवजात शिशु रूप श्री कृष्ण को सूप में रखकर यमुना पार कर यशोदा के यहां छोड़ आए। और यशोदा की पुत्री को साथ में कारागार वापस ले आए। कंस के कान में भनक पढ़ते ही वह बंदीग्रह पहुंचा और देवकी के हाथ से नवजात कन्या छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा। परंतु कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा अरे मूर्ख मुझे मार ने से क्या होगा? तुझे मारने वाला तो वृंदावन जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा। इस प्रकार से पूरी कथा को कथावाचक ने बड़े ही रोचक और संगीतमय ढंग से सुनाया। जिसे सुनकर वहां मौजूद श्रोतागण कथा में मंत्रमुग्ध रहे। कथा उपरांत सभी ने श्री कृष्ण जन्म का भोग प्रसाद ग्रहण कर कथा की रोचकता की चर्चा करते हुए अपने अपने घर को चले गए।

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