सुदामा चरित्र के साथ भागवत कथा का हुआ समापन

रिपोर्ट -शौकीन खान/कौशल किशोर गुरसरांय

गुरसरांय (झांसी)।समीपवर्ती ग्राम कैरोखर के बड़े हनुमान मंदिर प्रांगण में चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा में सातवें दिन की सुदामा चरित्र की कथा सुनाते हुए भागवताचार्य दीनबंधु दास जी महाराज ने सुदामा चरित्र की कथा सुनाते हुए कहा कि सुदामा चरित्र का वर्णन किए जाने पर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए। कथाव्यास ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है,जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है,तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है,मित्रता खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया। इस अवसर पर श्रीनिवास बुधौलिया,पवन गौतम,राजकांतेश वर्मा,भारती आर्या,बिहारी लाल आर्य,रोहित द्विवेदी,प्रतिपाल परिहार,शत्रुघन परिहार,हनुमान चतुर्वेदी,विमला दीक्षित आदि श्रद्धालु उपस्थित रहे। कथा की आरती पारीक्षित सरिता रामनरेश तिवारी और मुख्य यजमान कमला परशुराम तिवारी द्वारा की गई।

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